मंगलम भगवान वीरो,मंगलम गौतमो गणी । मंगलम कुन्द्कुंदाद्दौ, जैन धर्मोस्तु मंगलम ॥ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उव्झायाणं णमो लोए सव्व साहुणं..ऐसो पञ्च णमोक्कारो,सव्व पाव पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिम् पढमं हवई मंगलम ........ मैंने कुछ भजन भगवान् की भक्ती मे अर्पण किये है -आप भी इनका रसपान करे ! by raju bagra-madurai
Wednesday, September 20, 2023
87-तर्ज मेरा दिल ये पुकारे आजा (नागिन)(राग-दरबारी)
Saturday, November 5, 2022
84 तेरे होठों के दो फूल प्यारे प्यारे , (पारस)(राग-शिवरंजनी)
Tuesday, August 30, 2022
83_ तर्ज लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में, हजारों रंग के नजारे बन गए (कन्यादान)(राग असावरी]
Sunday, August 28, 2022
82 तर्ज कुन फाया कुन (रॉक स्टार)
Saturday, August 27, 2022
81 तर्ज कैसे बताएं, क्यूं तुझको चाहें, यारा बता ना पाएं (अजब प्रेम की गजब कहानी)
Sunday, August 21, 2022
79 तर्ज तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफियाना (डर्टी पिक्चर)
Saturday, August 20, 2022
80 अर्हम वंदो, जय पारस देवा
Sunday, April 10, 2022
78 तर्ज ना कजरे की धार,ना मोतियों के हार (मोहरा)
Sunday, April 3, 2022
86-ओ मैं तो, पूजा रचाऊं रे,पद्मावती माता कीजय जय पद्मावती माता,जय जय मां 2
Friday, October 15, 2021
76 तर्ज मतवालो देवरियो मारवाड़ी)
Saturday, September 18, 2021
75 तर्ज तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करते हैं ए सनम हम तो सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं (दीवाना)
Sunday, September 12, 2021
74 तर्ज जे हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से ( धरती कहे पुकार के)
Saturday, September 11, 2021
73 तर्ज किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी हैकहाँ हो तुम के ये दिल बेक़रार आज भी है (एतबार)
Friday, September 10, 2021
72 तर्ज तेरी मेरी गल्ला होंगी मशहूर,के रातां लम्बियां लम्बियां रे (शेरशाह)
Tuesday, September 7, 2021
71 तर्ज वादियां मेरा दामन रास्ते मेरो राहें,(अभिलाषा )
Monday, September 6, 2021
70 तर्ज का करू सजनी आए ना बालम (स्वामी)
Saturday, August 14, 2021
69 तर्ज-जब जब बहार आयी और फूल मुस्कराये मुझे तुम याद आये (तकदीर)
Saturday, August 29, 2020
63 तर्ज -तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है (प्यासा सावन)
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तर्ज -तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है (प्यासा सावन)
प्रभु साथ, है तो ,कोई डर नहीं है-२
निराशा के सागर ,में, आशा वही है
प्रभु साथ है तो
कुछ भी नहीं है तो कोई ग़म नहीं है
जहां पर प्रभु ,सब कुछ ,तो वहीं है
प्रभु साथ है तो
१
कैसी बीमारी ये महामारी-२
समझा नहीं कोई जग पे है भारी
महावीर तेरी कमी खल रही है
मानव-ता खत-रे में पड़ी है
प्रभु साथ, है तो
प्रभु साथ, है तो ,कोई डर नहीं है-
२
अणुव्रत, धारो,जो,सुख चाहो-२
जियो और जीने दो मंत्र सुनाओ
अहिंसा परम है ,धरम, इस जग में
वीर प्रभु का, ये मार्ग बताओ
प्रभु साथ, है तो
प्रभु साथ, है तो ,कोई डर नहीं है-
३
मानव जब, जब ,बनता है दानव-२
करता है शोषण, पर्या-वरण का
प्रकृति करेगी, स्वयं ,अपनी रक्षा
महामारियों,को तो सहना पड़ेगा
प्रभु साथ, है तो
प्रभु साथ, है तो ,कोई डर नहीं है-
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ताः 15.4.2020, 4pmwww.rajubagra.blogspot.com
Wednesday, August 12, 2020
68 तर्ज- जोत से जोत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो (संत ज्ञानेश्वर)
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तर्ज- जोत से जोत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो (संत ज्ञानेश्वर)
जिनवाणी सुनते सुनाते चलो
ज्ञान की गंगा बहाते चलो
क्षमा ही जैन धर्म का है सार
हिंसा को जड़ से मिटाते चलो
1
अनादि काल से मां जिनवाणी,
सबको राह दिखाती
सुख में दुःख में साथ निभाती
भव से पार कराती
जिनवाणी पूजन जो करता सदा-2
उनको गले से लगाते चलो
ज्ञान की गंगा बहाते चलो
2
अरिहंतो के मुख से निकली
तीनों लोक में फैली
काल अनंत बीत गए जग में
माता कभी ना ठहरी
जिन उपदेश जो सुनता सदा
उनको गले से लगाते चलो
ज्ञान की गंगा बहाते चलो
3
पर्युषण में दश धर्मो को
जो भी धारण करता
सोलह कारण भावना भा कर
तीर्थंकर सम बनता
तप की राह जो चलता सदा-2
तपसी को ऐसे नमाते चलो
ज्ञान की गंगा बहाते चलो
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 23.8.2020,4.30pm
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Tuesday, June 16, 2020
66 हमें और जीने की चाहत न होती (अगर तुम न होते)(राग-असावरी)
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तर्ज़- हमें और जीने की चाहत न होती (अगर तुम न होते)(राग-असावरी)
मुनी वर्धमान सागर, आsये तोरे द्वारेss
शरण मिल जाए तेरी, यही आश धारेss
1
तुम्हीं सच्चे गुरु और, पंच परमेष्ठिss
तुम्हीं सच्चे साधक, तपस्वी हो श्रेष्ठिss
गुरुवर तुम्हारेss,चरणों की धूलिss
लगालू जो माथे पे ,टले कर्म सूलीss
मुनी वर्ध मान सागर, आये तोरे द्वारेss---
2
दर्शन ज्ञान की, सम्यक मूर्तिss
सच्चे चरिsत्र की, जीवन्त ज्योतिss
शान्तिसागरss ,_आचार्य के जैसेss
हे गुरु तुम सम ,पुण्य से मिलतेss
मुनी वर्धमान सागर, आये तोरे द्वारेss
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 19.6.2020
12.30 AM
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Sunday, June 7, 2020
65 थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बाकी(मैने दिल तुझको दिया)
65
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तर्ज़-थोङा सा प्यार हुआ है थोङा है बाकी (मैने दिल तुझको दिया)
हे गुरु वर्धमान जी ,आप ही पूज्य हो
तेरे चरणों में मेरा ,सदा ही शीश हो
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
1
कमल सी कोमल काया,मनोरम छवी निराली
सनावद गांव से निकले, हो के गुरुवर वैरागी
दिशा जीवन की बदली, ब्रह्मचर्य को धारा
मनोरमा कमल का लाला,बना जग का सितारा
धन्य हुआ विश्व सारा,धन्य जैनत्व सारा
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
2
दिगम्बर मुनि चर्या में ,शिथिलता कभी नहीं की
संघ को एक सूत्र में ,पिरोकर ज्ञान वृद्धि की
सरलता विनयशीलता, गुणों की खान हो गुरुवर
शास्त्र आगम के ज्ञानी, जुबां पर मां जिनवाणी
शान्तिसागर आचार्य ,के परम भक्त हो
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
हे गुरु वर्धमान जी ,आप ही पूज्य हो
तेरे चरणों में मेरा ,सदा ही शीश हो
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 9.6.2020, 5 pm
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Wednesday, April 15, 2020
64 तर्ज-तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है (आचार्य श्री 108 विराग सागर जी को समर्पित)
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तर्ज-तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है (आचार्य श्री 108 विराग सागर जी को समर्पित)
गुरु हे विराग सागर,छवि मनोहारी-2
दुनियां झुके, तेरी महिsमा निराली
गुरु हे विराग सागर-
ज्ञान सुधा बरसाती, छवि है दुलारी
जिनवाणी मुख से,तेरे लगे अति प्यारी
गुरु हे विराग सागर-२
1
कपूर का लल्ला,श्यामा का तारा-2
चमका पथरिया नगर का सितारा
धन्य हुआ जन, गण मन सारा
श्री गुरु ने वैsराग्य को धारा
गुरु हे विराग सागर-
2
पंचम काल की,कठिन तपस्या
करते है शिष्यों की कठिन परीक्षा
आगम सुगम बनाते जाते
भाषा सरल करत समझाते
गुरु हे विराग सागर-
3
सोलह भावना दिल से है भायी
दश धर्मो में ही देह तपायी
ज्ञान का लक्ष्य चरिsत्र बनाया
मोक्ष ही जाने का निश्चय बनाया
गुरु हे विराग सागर-
Note: सभी अन्तरो की राग एक ही है
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता:29.4.20, 6.00pm
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Tuesday, March 31, 2020
67 मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता (आप आये बहार आयी)
67
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तर्ज़-मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता (आप आये बहार आयी)
मिलता,हमेशा,सुख,अहिंसा,के भाव से
दे कर गए संदेश,महा-वीर,ज्ञान से
मुनि वर्धमान, सागर तेरे ,चरणों की ,करूं पूजा
नहीं दिखता, मुझे जग में ,तुम्हारे सम, कोई दूजा
1
सनावद गांव धन्य हुआ,
तेरे आने से जग झूमा
हुआ हर्षित कमल का मुख,2
मनोरमा मां का, मन झूमा
तुम्हीं वर्तमान,के वर्द्धमान हो, तेरी, करूं पूजा
नहीं दिखता, मुझे जग में ,तुम्हारे सम, कोई दूजा
2
आचार्य शान्ति सागर की
परम्परा को निभाते हो
अठाईस मूल गुण मुनि के 2
पालन ,करते कराते हो
प्रभू भक्ति में ,रत हरदम,गुरु तेरी करूं पूजा
नहीं दिखता, मुझे जग में ,तुम्हारे सम, कोई दूजा
मुनि वर्धमान, सागर तेरे ,चरणों की ,करूं पूजा
नहीं दिखता, मुझे जग में ,तुम्हारे सम, कोई दूजा
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 19.6.20 10.30 pm
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Sunday, September 8, 2019
62 तर्ज-चले जैसे हवाएं सनन सनन, उड़े जैसे परिंदे गगन गगन (मैं हूं ना)
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम
कर्मो का होगा,दहन दहन
सुख मिल जायेगा, परम परम
हे हे-हे हे, हे हे हो हो sssss
हे हे,हो हो ,आ हाsssssss
मन की रोको हर मनमानी, सारी नादानी
मिल जाएगी मुक्ति रानी,जो है ठानी
तप करके जलालो ,करम करम
1
जिनवाणी हमको समझाये,
गुरुवाणी भी ये समझाये
संयम तप है बड़ा
हम भी संयम धारण करके
तर जाएंगे भव सागर से
संयमी बनेंगे सदा
सच्चे ,जैनी बनके,हम, करेंगे सबका भला
तप करके जलालो ,करम करम---------------
2
उत्तम क्षमा जंहा मन होई
अंदर बाहर शत्रु न कोई
करते है पूजा सदा
क्षमा भावना धारण करके
कोमलता के फूल खिलाके
क्रोध को करके विदा
सच्चे ,जैनी बनके,हम, करेंगे सबका भला
तप करके जलालो ,करम करम
कर्मो का होगा,दहन दहन
सुख मिल जायेगा, परम परम
हे हे-हे हे, हे हे हो हो sssss
हे हे,हो हो ,आ हाsssssss
मन की रोको हर मनमानी, सारी नादानी
मिल जाएगी मुक्ति रानी,जो है ठानी
तप करके जलालो ,करम करम
ता: 8.9.2019 11.45 Pm
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Friday, September 6, 2019
60 तर्ज - हरियाला बन्ना ओ नादान बन्ना ओ (मारवाड़ी)
रुपया पैसा,यो महल मालिया,
यो जग सारो,प्रभु ना भा व-2
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
इक तू ही जा ण ,म्हारी भक्ति री गहराई -2
आंसू डा,बह जाव गर गर
कर्मा री पीड़ा जद सताव
केसरिया प्रभु ओ, सांवरिया प्रभु ओ
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
1
शिखरजी गयो रेे, हे पारस प्रभु रे -2
म वंदना भी कर आयो,
प्रभु अब कष्ट मिटाओ सा
बैरागी प्रभु ओ,बैरागी गुरु ओ-
केसरिया प्रभु ओ, सांवरिया प्रभु ओ
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
इक तू ही जा ण ,म्हारी भक्ति री गहराई -2
आंसू डा,बह जाव गर गर
कर्मा री पीड़ा जद सताव
बैरागी प्रभु ओ,बैरागी गुरु ओ-2
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
2
चांदनपुर गयो रेे, महावीर प्रभु जी -2
थार लाडू भी चढ़ाया,
अब तो दुखड़ा मिटाओ सा
बैरागी प्रभु ओ,बैरागी गुरु ओ-
केसरिया प्रभु ओ, सांवरिया प्रभु ओ
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
इक तू ही जा ण ,म्हारी भक्ति री गहराई -2
आंसू डा,बह जाव गर गर
कर्मा री पीड़ा जद सताव
बैरागी प्रभु ओ,बैरागी गुरु ओ-
केसरिया प्रभु ओ, सांवरिया प्रभु ओ
म्हे आया शरण म थारी, म्हन ना ठुकराओ सा-2
ता:-7.9.2019,1.15 AM
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Monday, September 2, 2019
59 तर्ज-ओ करम खुदाया है तुझे मुझसे मिलाया है-रुस्तम
प्रभु ध्यान लगाया है
दश धरम निभाने को ,मेरा मन अकुलाया है
जो तेरा संग पाया,ये मन हर्षाया
तू है परमातम , मैंने सब कुछ पाया
ते-रे चरणों में, मैंने ध्यान लगाया
1
मैंने छोड़े है पापों के रास्ते
अब आया हूं तेरे पास रे
तेरी भक्ति में डूबा जाऊं में
पहचान ले
मैंने क्रोध कषाय को त्याग दिया
मैंने क्षमा धरम अपना लिया
स्वारथ के इस संसार को
है जान लिया
शुभ करम जो आया है,प्रभु ध्यान लगाया है
दश धरम निभाने को ,मेरा मन अकुलाया है
जो तेरा संग पाया,ये मन हर्षाया
तू है परमातम , मैंने सब कुछ पाया
ते-रे चरणों में, मैंने ध्यान लगाया
2
कभी किसी भी, गति में जाऊं मैं
तेरे ध्यान से भटक ना जाऊं मैं
मैं हूं अज्ञानी इक आत्मा
पहचानना
तेरा मेरा मिलना दस्तूर है
तेरे होने से मुझमें नूर है
मैं हूं अज्ञानी इक आत्मा
पहचानना
दश धरम निभाने को ,मेरा मन अकुलाया है
जो तेरा संग पाया,ये मन हर्षाया
तू है परमातम , मैंने सब कुछ पाया
ते-रे चरणों में, मैंने ध्यान लगाया
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Sunday, December 30, 2018
58 तर्ज- प्रेम कहानी में इक लड़का होता है इक लड़की होती है(प्रेम कहानी)(राग-मालगुंजी)
प्रभु की पूजा में,
इक शक्ति होती है
इक भक्ति होती है
जब दोनों मिलते है ,तब मुक्ति होती है-2
1
इतनी सी, छोटी सी, होती है ,ये जिंदगानी-2
रुक जाती है,थम जाती है,जब ये सांसे सारी
स्वार्थी दुनियां में
तू एकला आता है
और एकला जाता है
जब कुछ नहीं मिलता है, फिर क्यों तू रोता है
प्रभु की पूजा में,
इक शक्ति होती है
इक भक्ति होती है
जब दोनों मिलते है ,तब मुक्ति होती है
2
गुरुओं का संगम जब तब मिल जाता है हमको
उनके उपदेशों से पथ मिल जाता है हमको
जिनवाणी सुनके
इक ज्ञान जो मिलता है
इक आनन्द मिलता है
जब दोनों मिलते है,तब मोक्ष भी मिलता है
इक शक्ति होती है
इक भक्ति होती है
जब दोनों मिलते है ,तब मुक्ति होती है-2
ता: 4.9.2019 11.30.P.M
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Friday, September 21, 2018
56 तर्ज- मेरी भीगी भीगी सी पलकों में रह गए,(अनामिका)(राग-कीरवानी)
हम रोज नमन करते
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
तुम्हें बिन जाने,बिन पहचाने,जन्म अनेकों गंवाये - 2
आज हमें जब ज्ञान मिला तो,तेरे चरणों में आये
चारों गतियों में दुःख जो उठाये
तड़प के आहे भर भर के
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
तू ही इक सहारा ,नश्वर जग में,भव से जो पार कराये - 2
जनम जनम के पाप करम से,हम को भी मुक्ति दिलाये
ऐसी ही आशा, ले के हम आये
तेरी दया पाने को
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
Wednesday, September 19, 2018
55 तर्ज-थारी आंख्या का यो काजल ,म्हनै करे से गोरी घायल (लोक गीत हरियाणा)
हर ल म्हारा मन की पीड़ा ) 2
तू हाथ फिरादे सर पर
हो जावे संकट दूरा
ओ थारी पल पल पल पल याद घणी ,म्हां न आवे छः ओ य}
थारी शान्त छवि म्हा र मनड़ा म मुस्काव छः } ----- 2
थार चरणा म आग्या वीरा------
1
पर पीड़ा और पर निन्दा, म्हां न घणी सुहावण लागी)
माया चारी कर कर म्हारी छाती दूखण लागी)2
जद खुद पर बीतण लागी
मुखड़ा पे आई उदासी
म्हे अकड़ म गेला हुग्या
थान भूल के मैला हुग्या
ओ थारी पल पल पल पल याद घणी ,म्हां न आवे छः ओ य}
थारी शान्त छवि म्हा र मनड़ा म मुस्काव छः } ----- 2
थार चरणा म आग्या वीरा------
जद पड्या करम का सोटा
म्हे टेढ़ा, बणग्या सीधा
म्हारो जियड़ो अब दुःख पाव
जियड़ा न कुण समझाव
ओ थारी पल पल पल पल याद घणी ,म्हां न आवे छः ओ य}
थारी शान्त छवि म्हा र मनड़ा म मुस्काव छः } ----- 2
थार चरणा म आग्या वीरा------
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि" ,मदुरै
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Sunday, September 16, 2018
54 तर्ज -प्यार दीवाना होता है ,मस्ताना होता है [कटी पतंग](राग-देस,काफी,यमन)
गुरु शरण में चलो सभी ,दुःख गुरु ही हरता है
१
गुरु कहे हर आतम से - तेरा नहीं कोय
काया नहीं तेरी अपनी -दुजा होवे कौन
स्वारथ के रिश्ते है ,गले ,लगा के बैठा है
गुरु शरण में चलो सभी ,दुःख गुरु ही हरता है
२
गुरु कहे हर आतम से , संयम मन में धार
वश में करले इन्द्रियों को ,होवे फिर उद्धार
तप करने से मन में संयम उत्पन्न होता है
गुरु शरण में चलो सभी ,दुःख गुरु ही हरता है
३
सुनो किसी गुरुवर ने ये ,कहा बहुत खूब
मना करे दुनियां लेकिन मेरे महबूब
हिंसा के पथ पर चलने से , दुःख ही मिलता है
प्रेम के पथ पर चलने से,बस ,सुख ही मिलता है
गुरु जनों के मुख से जो ,जिनवाणी सुनता है
गुरु शरण में चलो सभी ,दुःख गुरु ही हरता है
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ; 17 -9 -2018 -1.00 am
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Monday, July 31, 2017
61 तर्ज -वादा न तोड़,तू वादा न तोड़ [फ़िल्म -दिल तुझ को दिया ]
हो मुक्ति नगरी का ,एक यही है द्धार
तपस्या करो ,तपस्वी बनो
रे तपसी ,होगी तेरी जग में जयकार
तपस्या करो ,तपस्वी बनो
1
पंचेन्द्रियों के जाल में फंसकर ,जाने कितने जनम गंवाये
संयम धारण करने से तेरे , कर्मो के बंधन टूटते जाये
हो मुक्ति नगरी का ,एक यही है द्धार
तपस्या करो ,तपस्वी बनो-2
रे तपसी ,होगी तेरी जग में जयकार
2
चारों गति में संयम पालन ,मानव ही कर सकता है धारण
त्यागी तपस्वी ये बतलाये , पंचेन्द्रियों से मुक्ति दिलाये
हो मुक्ति नगरी का ,एक यही है द्धार
तपस्या करो ,तपस्वी बनो
रे तपसी ,होगी तेरी जग में जयकार
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
1. 8 . 2017
Tuesday, September 13, 2016
53 तर्ज -जग घूमिया थार जैसा ना कोई [सुल्तान]राग "मधुमाद सरंग"
मनवा मेरा हर्षाया
जग घुमिया थार.जैसा न कोई -2
थारी शरण में
दुःख दूर सब
तेरी भक्ति में ,डूबा हूं मैं
1
आँखों में दयालुता है ,चेहरे पे शीतलता
मन्द मन्द मुस्काते ,मुखड़े की सुन्दरता
वीतरागता ssssss
वीतरागता की मूरत ,क्षमा भाव रखता है
इन्द्र भी तेरे ,दरश को तरसता है
थान. देव भी पूजते
थान. देख वे हर्षाते
दुखियों की है सुनी
तुम ही हो इक मुनि
हे प्रभू तुमसे है कहना ------जग घुमिया थार.जैसा न कोई -4
2
हरदम तेरा ही मैं, ध्यान लगाता हूँ
भ-क्ति के भावों से मैं, पूजा रचाता हूँ
महावीरजी sssssss
महावीर तुमने जग को, अहिंसा सिखाई
प्रेम सिखाया जग को ,करुणा सिखाई
थान. देव भी पूजते
थान. देख वे हर्षाते
दुखियों की है सुनी
तुम ही हो इक मुनि
हे प्रभू तुमसे है कहना ------जग घुमिया थार.जैसा न कोई -4
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;13 -09 -2016
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Wednesday, September 7, 2016
52 तर्ज -मैं कहीँ कवि न बन जाऊ, तेरे प्यार में ए कविता (प्यार ही प्यार)(राग-कीरवानी)
Tuesday, September 22, 2015
51 तर्ज -धीरे धीरे से मेरी जिन्दगी में आना [आशिकी ]राग-भूपाली
जिन्दगी का,नहीं कोई ,ठिकाना
जिनके प्यार में,हो गया है,तू दीवाना
उनको छोड़ के,तुमको,इक दिन है जाना
धीरे धीरे --------------
१
जब सेss आया हूँ ,तेरी शरण में ,मेरे प्रभू
तब से मुझको ,नश्वर जग का ,हुआ ज्ञान प्रभू
रिश्ते नाते ,सब स्वारथ में ,लिपटे है प्रभू
पल पल में ,बदलना ,मानव का ,स्वभाव प्रभू
धीरे धीरे,अपने मन को,समझाना ----------------
२
उत्तम है क्षमा,मार्दव,आर्जव ,सत्य शौच संयम
तप त्याग आकिंचन ,ब्रह्मचर्य ,यह दश है धर्म
करना चाहिए ,इनका पालन ,हमें जीवन में
होगा कल्याण ,हमारा ,इनके पालन से
धीरे धीरे,अपने मन को,समझाना ----------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता -२३.०९.२०१५
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Thursday, September 17, 2015
50 तर्ज -उडियो रे उडियो [सुवटियो ]मारवाड़ी
आयो पर्युषण त्यौहार -आयो पर्युषण त्यौहार
पर्युषण है मोक्ष मार्ग रो द्वार -द्वार रे
आयो पर्युषण त्यौहार -आयो पर्युषण त्यौहार
१
क्षमा धर्म से पारस -मुक्ति में गया -मुक्ति में गया
बैर कमठ न नरका दियो पुगाय -आय रे
आयो पर्युषण त्यौहार -आयो पर्युषण त्यौहार
२
खाता पीता उमर -सारी बीतगी -ढ़ोला बीतगी
रसना इंद्री न देदो विश्राम -आराम रे
आयो पर्युषण त्यौहार -आयो पर्युषण त्यौहार
३
दान धर्म करबा स्यु -भाया भव सुधर -भाया गति सुधर
प्रभु चरणा म धन रो ढेर चढ़ाय- आय रे
आयो पर्युषण त्यौहार -आयो पर्युषण त्यौहार
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता 18 . 9 . 2015
49 तर्ज -परदे में रहने दो पर्दा ना उठाओ -[शिकारी ](राग-मधुवन्ति)
जैसा जो बोयेगा ,वैसा वो पायेगा -२
बोया है जो बबुल , तो कांटे ही पायेगा
पापो से करले तौबा - पापो से करले तौबा
१
पाप के फंदे तू खुद बुनता है
बुनके फंदो को तू खुश होता है
जब भी , दुखो की बाढ़ आती है -२
रोते रोते ही -२ जान जाती है -
हा तो -जैसा जो बोयेगा
२
दश धर्मों के - दस दिन आये है
पापो से -बचने के दिन आये है
अपनी काया को, अब तपाले तू -२
याद रखना फिर -२ मुक्ति पाओगे
हा तो -जैसा जो बोयेगा
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता -16 . 09 . 2015
11 . 55 pm
Sunday, September 7, 2014
45 तर्ज-मैं रंग शर्बतों का -तू मीठे घाट का पानी[फटा पोस्टर निकला हीरो ](राग- पीलू)
45
तर्ज -मैं रंग शरबतों का -तू मीठे घाट का पानी [फटा पोस्टर निकला हीरो ](राग- पीलू)
Monday, September 1, 2014
48 तर्ज -पूरा लन्दन ठुमकता [क्वीन] (पंजाबी लोकगीत fusion)
48
तर्ज -पूरा लन्दन ठुमकता [क्वीन](पंजाबी लोकगीत fusion)
Saturday, August 30, 2014
22 तर्ज-हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार जिंदगी में (जांबाज)(राग-मालगुंजी & मालकौंस)
22
Thursday, August 28, 2014
42 तर्ज-फूलों का तारों का सबका कहना है [हरे रामा हरे कृष्णा ] (राग-बिलावल)
42
तर्ज -फूलों का तारों का सबका कहना है [हरे रामा हरे कृष्णा ] (राग-बिलावल)
Tuesday, September 10, 2013
47 तर्ज -सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मै [आशिकी 2 ]
47
तेरे चरणों में दौड़े आये
वीरा ssss वीरा ssssss वीरा sssss
मुझको ये ज्ञान दे
आतम का भान दे
मेरी काया से मुझको थोड़ा तॊ बैराग दे
क्षमा का भाव दे
दया का भाव दे
मुझ पर हो जाये कृपा थोड़ा आशीर्वाद दे
तेरे चरणों में दौड़े आये
कर दे इधर भी तू निगाहे
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
१
मोह का अँधियारा , खुद को भुला दिया
पर को निज समझा , पापों से घिर गया
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे चरणों में दौड़े आये
कर दे इधर भी तू निगाहे
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
२
धन मैं ने कमाया ,जीवों को मार के
बिलकुल निर्दयी हूँ , लालच के भाव से
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे चरणों में दौड़े आये
कर दे इधर भी तू निगाहे
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
सुन रहा है ना तू, बु ला रहा हूँ मै
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ; 10. 09. 2013
46 तर्ज -क्योंकि तुम ही हो [आशिकी 2 ](आसावरी थाट)
46
हम तेरे चरणों में आये है जिनवर
अपना शीश झुकाने को
तुझ को छू कर मिल जाये मुक्ति
है विश्वास मेरे मन को
क्यूँ कि तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो
१
तेरा मेरा रिश्ता पुराना
भक्ति कभी टूटी ही नहीं
मै कभी तुमसे दूर हुआ पर , तुमने मुंह मोड़ा ही नहीं
हर जनम में तुमने संभाला मुझे
मुझे सम्यक ज्ञान करा के sssss
क्यूँ कि तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो
२
मेरे लिए ,ही जिया मै , हूँ स्वार्थी
कर दिया है ,भोगो में जिन्दगी को पूरा -सारी अच्छाइयों को छोड़ा
हर जनम में तुमने संभाला मुझे
मुझे सम्यक ज्ञान करा के sssss
क्यूँ कि तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ; १०. ०९. २०१३
Sunday, September 8, 2013
43 तर्ज -जीने लगा हूँ पहले से ज्यादा [रमैया वस्तावैया ](राग-यमन)
करने लगा हूँ भक्ति प्रभु की
पहले से ज्यादा अब मै करने लगा हूँ
ओ ssssss ओ sssssss ओ ssssss
मै तेरे ध्यान में डूबा रहूँ
खुद की मै पहचान करता रहूँ
जीना मुझे तू सिखाता रहे
कर्मो का मैल हटाता रहूँ
करने लगा हूँ भक्ति प्रभू की ------------
१
जन्म जन्म के मेरे संस्कार कैसे
उलझा हुआ हूं झूठी माया में ऐसे
झूठी माया में मै उलझा ,जनम जनम से कैसे
तेरी शरण में आया भगवन मुझको बचाले भव से
तुझ से ही शक्ति मिलती मुझे है
भक्ति में तेरी अब मै बहने लगा ------ओ sssss
२
उत्तम क्षमा के फूल खिलने लगे है
हिंसा के कांटे मन से खिरने लगे है
फूल क्षमा के अब तो मेरे, मन में खिलने लगे है
तेरे ध्यान से क्रोध के कांटे ,मन से खिरने लगे है
तुझ से ही शक्ति मिलती मुझे है
भक्ति में तेरी अब मै बहने लगा ----ओ ssssss
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ;०८. ०९. २०१३
44 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ] (राग पीलू)
44
तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ] (राग पीलू)
ओह रे जीव फिरे भव सागर में
चारों गती नापे रे
सुखी दुखी कर्मो से होवे - नहीं जाने रे
१
रिश्ते नातो में उलझा - सुखी दुखी होता है -२
काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -२
ओ मितवा रे -S S S S S S S
काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -
कोई ना जाये संग में नहीं माने रे -ओह रे -------------
२
जन्मो जन्मो की कषायो ,में लिपटी आत्मा -है लिपटी आत्मा
क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -२
ओ मितवा रे -S S S S S S S
क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -
क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना -
ओह रे जीव फिरे भव सागर में ---------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ;०८. ०९.२०१३
Sunday, September 23, 2012
21 तर्ज-पीलूं तेरे नीले नीले नैनो से शबनम [once upon a time in mumbai ]
पीलूं ,तेरी ज्ञान की अमृतधारा को भगवन
जीलूं, तेरे चरणों में जीवन के ये दो पल
जीलूं ,है जीने का मेरा मन
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
-
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
तेरे चरणों में आया ,मुझमें है तेरी छाया
सुनले दुखों की ,दर्द भरी, दास्तांs s s भगवान, ओ मेरे भगवान
भगवानs s सुनले जरा s s s s
1
स्वर्गो में ,कभी मैं नरको में ,हर जनम फिरता भटकता रहा मारा मारा हूँ मैं
तेरा संग, मिला है इस जनम , अब नहीं छोडूंगा बन के रहूँगा मैं तेरा सदा
पीलूं गंधोदक तेरे चरणों का भगवन
जीलूं, तेरे चरणों में जीवन के ये दो पल
जीलूं ,है जीने का मेरा मन
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
-
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
2
दश धरम, मैं पालूंगा सदा ,हर समय ध्यान- करूँगा मैं तेरा, रात दिन
तूं ही सिर्फ ,सुखों की खान हो ,और, कहीं सुख भी नहीं है अधूरे, इस संसार में
पीलूं ,तेरी ज्ञान की अमृतधारा को भगवन
जीलूं, तेरे चरणों में जीवन के ये दो पल
जीलूं ,है जीने का मेरा मन
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
-
तूं ही इक वीतरागी है
तूं ही सच्चा बैरागी है
तूने जन जन को तारा है
तूं ही सच्चा सहारा है
तेरे चरणों में आया ,मुझमें है तेरी छाया
सुनले दुखों की ,दर्द भरी, दास्तांs s s भगवान, ओ मेरे भगवान
भगवानs s सुनले जरा s s s s
रचयिता
राजू बगड़ा
ता -23.9.2012
41 तर्ज-मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली [राजा और रंक ](अलैया बिलावल)
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से
मेरा कोई नहीं है अपना
फिर भी मानू सबको अपना
दुखी होती रहती, जनम मरण के फेर में
1
स्वर्गो में मैं जाय विराजी ,इर्ष्या से जल जल गयी 2
नरको में जब पहुँची तो ,बदले की, आग में जल गयी
रे सुख न मिला मुझे इक पल को s s s s s
मैं हूँ मूरख ,मैं अज्ञानी ,सुनलो मेरी कहानी
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से
2
मनुज जनम पाया है मैंने ,मुश्किल से अब जाके 2
सुख की छाँव मिली है मुझको, तेरा दर्शन पाके
ओ प्रभुजी मेरी अब सुध ले लो s s s s s
मैं हूँ मूरख ,मैं अज्ञानी ,सुनलो मेरी कहानी
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता -23.9.2012
Wednesday, September 19, 2012
20 तर्ज-कहीं दूर जब दिन ढल जाये ,सांझ की दुल्हन बदन चुराए [आनंद ](राग-पहाङी)
Sunday, September 16, 2012
40 तर्ज ;-ओ फिरकी वाली ,तू कल फिर आना [राजा और रंक ](राग-झिंझोटी)
ओ पिच्छी वाले ,
हम शीश झुकाए ,तेरे गुण गाये ,मन- वचन और काय से
कि अब जाना है हमें भव पार से
1
तेरी तपस्या की ,क्रिया- को देख देख कर -2
सबको अचरज होता है
कैसे कर लिया ,मन इन्द्रियों को वश में
सबको विस्मय होता है
सर्दी गर्मी -2,हो या बारिश ,कोई फरक नहीं पड़ता
तूने छोड़ा- है घर-बार सारा ,एशो आराम सारा
और निकला है शान से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------
2
तेरे उपदेश की, ये बाते सुन सुन के -2
मन बैराsगी होता है
मन में छुपे हुए ,जो अव-गुण सारे
धुल के निर्मल होता है
एक बार तू -2 हाथ फिरा दे ,दया से मेरे सर पे
मिट जाये -विकार मेरे सारे ,हो जाये वारे न्यारे
तेरे उपकार से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ;-16.9.2012
Monday, September 3, 2012
19 तर्ज-सोना की घड़ाद्दयों- म्हार-पायलड़ी -[मारवाड़ी]
कोई हीरा को जड़ाद्दयूँ -सिंssहासन -प्रभूजी ,केसरिया-2
डगमग डोळ मंझदारss में नाव-2
कोई पूजा कर, प्रभु की,हो भव पार -प्रभूजी ,केसरिया -2
सोना की घड़ाद्दयूँ थारी -मूरतिया
1
बचपन खिलौना माही खेल बितायो -2
रंगरेल्या म सारो जीवन बितायो -
अब आयो जो बुढापो-आयी याद-प्रभुजी केसरिया -2
कोई हीरा को जड़ाद्दयूँ -सिंssहासन -प्रभूजी ,केसरिया-2
2
केवो तो प्रभूजी सोलह - भावना भावू -2
बोलो तो हमेशा चरणा म -रह जाऊ
बण जाऊ थार चरणा को दास -प्रभूजी, केसरिया -2
सोना की घड़ाद्दयूँ -थारी -मूरतिया-
कोई हीरा को जड़ाद्दयूँ -सिंssहासन -प्रभूजी ,केसरिया-2
डगमग डोळ मंझदारss में नाव-2
कोई पूजा कर, प्रभु की,हो भव पार -प्रभूजी ,केसरिया -2
सोना की घड़ाद्दयूँ थारी -मूरतिया-2
कोई हीरा को जड़ाद्दयूँ -सिंssहासन -प्रभूजी ,केसरिया-2
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;4.9.2012
Tuesday, August 14, 2012
18 तर्ज-एजी हा सा म्हारी रुणक झुणक पायल बाजे सा-[मारवाड़ी]
एजी हा सा म्हारो मनडो पूजा विधान चाव सा -2
बाई सा रा बीरा मन्दिरा म चालो सा -2
एजी हासा म्हारो मनडो जिनवाणी सुणबो चाव सा -2
बाई सा रा बीरा उपदेशा म चालो सा -2
एजी हा सा म्हारो मनडो आहार देबो चाव सा -2
बाई सा रा बीरा मुनि संघा म चालो सा -2
ता;-15-08-2012
Saturday, December 24, 2011
38 तर्ज why this kolaveri kolaveri kolaveri d-super bhajan-english-
38 तर्ज why this kolaveri kolaveri kolaveri d-super bhajan-english-
why this thari mhari,thari mhari,thari mhari d- [3 time] [thari mhari means-its yours its mine]
why this thari mhari,------------------------------ d
sky lu sun moon, hot cool bright
hot cool girl boys, always fight
why this thari mhari,thari mhari,thari mhari d-2
everybuddy near dear, nobuddy but yours
everytime keep in mind,death will be sure
why this thari mhari,thari mhari,thari mhari d-2
pa pa p pa- pa pa p pa- pa pa p pa- pap pa-2-------------
ok mama
now tune changes
khali hath [only english]
empty hand comes in world, empty hand goes
everybuddy know it well, no buddy believe
money money lovely money,everybuddy want u
black money white money, any colour love u
life like water drops, burst any how
mom dad son wife,nobuddy save u
why this thari mhari,thari mhari,thari mhari d-2
why this thari mhari,thari mhari,thari mhari d-2
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
dt-24.12.2011
11.00 pm
Thursday, September 8, 2011
17 तर्ज -हुड हुड दबंग दबंग दबंग दबंग-[दबंग] (राग-भैरवी)
३
ये जंगल जंगल घूमे है
और गाँव गाँव में जावे है
बड़े जुंझार-तपसी महान-रहे तपस्या में ये आगे
ता ;८.९.२०११
Sunday, September 4, 2011
16 तर्ज-कजरा मोहब्बत वाला अंखियो में ऐसा डाला [किस्मत ] (राग-वृन्दावनी सारंग)
Saturday, August 27, 2011
15 बड़े अच्छे लगते है-ये धरती,ये नदिया,ये रैना ,और तुम [बालिका वधु ](राग-देवगिरी बिलावल)
Sunday, July 31, 2011
14 तर्ज -पैसा पैसा करती है तू पैसे पे क्यू मरती है [दे दना दन]
Thursday, March 31, 2011
35 तर्ज -प्यार माँगा है तुम्ही से ,ना इनकार करो [कॉलेज गर्ल ](राग-पीलू)
Sunday, November 14, 2010
13 तर्ज सुरमयी अंखियों में नन्हा मुन्ना इक सपना दे जा रे - [सदमा] राग-पीलू
प्रभु चरणों में आकर
मुझको बड़ा अच्छा लगता है -२
प्रभु मेरे सच्चे साथी है
भव भव से वो साथी है -रा री रा री ओ रारी ओ
१
देव गुरु ब्रहस्पति भी अपने
ज्ञान से प्रभु गुण गा नहीं पाते
ऐसे में मुझ अ$ज्ञानी की ,स्तुति सुन के
होती है सब जग में हँसी
फिर भी मै करता स्तुति ---------प्रभु चरणों में आकर ------
२
तीन लोक की सुन्दरता यदि
रूप बदलकर प्रभु सम आवे
प्रभु चेहरे को ,देखकर इक पल में ही
शरम से मुरझाने लगे
और फिर ये गाने लगे ------------प्रभु चरणों में आकर ------------
३
पंचेंद्रियो को वश में करके
चंचल मन को वश में करके
खुद को जीता ,इसलिए दुनिया वाले
महा वीर कहने लगे
तेरे गुण गाने लगे ------------प्रभु चरणों में आकर ---------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;१४-११-२०१०
Monday, September 13, 2010
34 तर्ज -सुहानी चांदनी राते हमें सोने नहीं देती [मुक्ति] (राग-दरबारी कन्नड)
34
सुनानी है प्रभु तुमको मेरे संसार की बाते
निरंतर बढते कर्मो से दुखो की बढती सौगाते
१
नरक में बदले की अग्नि ,स्वर्ग में ईर्ष्या की अग्नि
हर इक गति में उठाये दुःख -न आई सुध कभी अपनी
बड़ी मुश्किल से पाया है ,तुम्हे इस जनम में आके
न छोड़ूगा तुम्हे अब मै किसी की बातों में आके .........सुनानी है ..........
२
कहीं ऐसा न हो -फिर से -मैं तुमसे दूर हो जाऊं
दिखा देना वो सच्ची राह अगर मै डगमगा जाऊं
नयी शुरुआत करनी है तुम्हारी शरण में आके
न छोड़ूगा तुम्हे अब मै किसी की बातों में आके ........सुनानी है ............
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
१२ -०९ -२०१०
Saturday, September 11, 2010
12 तर्ज--तेरे मस्त मस्त दो नैन मेरे दिल का ले गए चैन [फिल्म -दबंग](राग-भूपाली)
चाहते रहते प्रभु को सांझ सवेरे
मिलती है खुशिया हो जो दर्शन तेरे -२
तेरे भक्त बहुत बैचैन -सबको मिल जाये चैन
सबको मिल जाये चैन -तेरे भक्त बहुत बैचैन
१
इन्द्रों के मुकुटो की, मणियों से रोशन तेरा चेहरा हाय चेहरा हाय
सूरज चाँद का ,रंग है फीका , तेरे आगे आगे शर्माए जाये
तेरी कृपा जो हमको , मिल जाये भगवन ,पा जाये मुक्ति और हो जाये पावन
पा जाये मुक्ति और हो जाये पावन
तेरे भक्त बहुत बैचैन सबको मिल जाये चैन ...........................
२
जनम जनम से , भव सागर में ,कर्मो ने जकड़ा जकड़ा जकड़ा हाय
तेरी दया का, अब है सहारा , तुने तारा तारा सबको है तारा
तेरी कृपा जो हमको , मिल जाये भगवन ,पा जाये मुक्ति और हो जाये पावन
पा जाये मुक्ति और हो जाये पावन
तेरे भक्त बहुत बैचैन सबको मिल जाये चैन ...........................
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
११ .९ .२०१०
Saturday, March 13, 2010
32 तर्ज-हम दोनो मिलके,कागज पे दिल के,चिट्ठी लिखेगे,जबाब आएगा (तुम्हारी कसम) (राग-खमाज)
32
जिनवाणी सुन के
ध्यान करने से, प्रभु मिल जायेगा
१
मन्दिर की घंटी बजे तो, दौड़े चले आना
प्रभु अभिषेक से अरिष्ट को मिटाना
पूजा की थाली को अष्ट द्रव्य से सजाना
प्रभु की पूजा में, तन मन से जी लगाना
मन में मन्दिर के
प्रभु बसाले
प्रभु बसाने से भव तर जायेगा -----------------गुरुओ से मिल के
२
मन्दिर में प्रभु के ऊपर , तीन छतर सोहे
प्रभु के चेहरे की,मुस्कान मन को मोहे
तीन लोक की सम्पति सगरी,त्यागी इक पल में
हो के वीतरागी , वो समाये कण कण में
नश्वर है काया
सब कुछ पराया
कुछ भी नहीं तेरे साथ जायेगा -------------------गुरुओ से मिल के
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
१३.०३.१०
Wednesday, July 22, 2009
10 तर्ज-ससुराल गेंदा फूल -दिल्ली ६ (लोक गीत)
10
सैय्या मुंह झुकाए ,अख़बार पढता जाए -संसार गेंदा फूल
सास मन्दिर जाए ,ससुरजी घुमण जाए -संसार गेंदा फूल
छूटा प्रभू का दर्शन बहू को ,नौकरानी याद आए
ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय
सास मन्दिर जाए ----------------------------------
१
मन्दिर म प्रभू की, पूजा तो नही सुहाव
आवण जावण वाला से ,बा तो बतियाती जावे -संसार गेंदा फूल
ओय होय होय ,ओय होय होय ,ओय होय होय ,ओय होय होय
२
सैय्या है व्यापारी ,आए प्रभो के द्वार
मोबाईल पे बतियाते ,प्रभू के जोड़े हाथ -----संसार गेंदा फूल
ओय होय होय ,ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय
३
ऑफिस जल्दी जाणो, यूँ मन म कर विचार
और बिन फेरी काटे ही ,प्रभू से कह बाय बाय -----संसार गेंदा फूल
ओय होय होय ,ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय
४
टीवी और बीबी से ,समय जे बच जाए
कर टीका टिप्पणी गुरुआ पर ,मन म खुशी मनाव---------संसार गेंदा फूल
ओय होय होय ,ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय
५
बेटा है लाडेसर ,और पोता परमेश्वर
आ सब न की ना केव ,बस बहू न धमकाव --------संसार गेंदा फूल
६
भक्ता की ऐ बाता, भक्ति की परिभाषा
प्रभू देख देख मुस्काव ,संसारी समझ न पाव----------संसार गेंदा फूल
सैय्या मुंह झुकाए ,अख़बार पढता जाए -संसार गेंदा फूल
सास मन्दिर जाए ,ससुरजी घुमण जाए -संसार गेंदा फूल
छूटा प्रभू का दर्शन बहू को ,नौकरानी याद आए
ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय,ओय होय होय
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
२१.०७.०९
Tuesday, December 30, 2008
31 तर्ज -रात कलि इक ख्वाब में आयी (बुड्ढा मिल गया)(राग-खमाज)
आज प्रभु तेरे चरणों में आकर -जीवन मेरा धन्य हुआ
सुबह सुबह तेरे दर्शन पाकर -मन अत्यंत प्रसन्न हुआ
१
यूँ तो जगत में ,चाँद और सूरज ,करते है रोज उजियारे
पर तेरे ज्ञान की ,जोत से मिटते , आतम के अंधियारे
तेरी चमक से ,मेरे जीवन में
ज्ञान का फिर संचार हुआ -------------आज प्रभु
२
जनम जनम से, भवसागर में ,कर्मो के जाल बुने है
उन जालो में ,फंसकर क्या क्या ,दुःख ना मैंने सहे है
तेरे ज्ञान की ज्योती से मुझको
कर्मों की लीला का भान हुआ ---------आज प्रभु
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Wednesday, August 13, 2008
30 तर्ज;-उड़ती कुरजरिया -मारवाडी लोक गीत
१
पहलों तो संदेशो म्हारो वीर प्रभु न दीज्यो थे -२
भारत री जनता रो थे प्रणाम दीज्यो हे -उड़ती कुरजरिया
अर र र -उड़ती कुरजरिया -----------------
२
हिंसा झूठ में कुछ नही रखा-आ जनता न कीज्यो थे -२
प्रेम भाव री बाता थोडी सिखला दी ज्यो हे -उड़ती कुरजरिया
अर र र -उड़ती कुरजरिया ------------------
३
लोभ पाप और मान कषाया रो विष पीणो छोड़ दो-२
प्रेम रो अमृत जनता न पीणो बतलाईज्यो हे -उड़ती कुरजरिया
अर र र -उड़ती कुरजरिया ---------------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Friday, August 8, 2008
28 तर्ज;-तुम्हें गीतों में ढालूँगा -(सावन को आने दो)(राग-शिवरंजनी)
मै मुक्ति पद पाउँगा -२
दश धर्म निभाऊंगा
दश धर्म मै निभाऊंगा
१
बदले की अग्नि में जलना
ख़ुद को है भव भव घुमाना
हिंसा की अग्नि बुझाना
क्षमा का नीर बहाना ---------मै क्षमा को धारूंगा -२
दश धर्म निभाऊंगा ----------दश धर्म मै निभाऊंगा
२
चरणों में आया हूँ वीरा
शीतलता मुझ को मिल जाए
मुरझाई ज्ञान लता ये
तेरी कृपा से खिल जाए --------------- मै ज्ञान को पाउँगा -२
दश धर्म निभाऊंगा -----------------दश धर्म मै निभाऊंगा
३
आतम का भेद ना जाना
पुदगल से मोह लगाना
कैसे सुनाऊ अपनी पीड़ा
कितना अभागा हूँ महावीरा-------------तेरा ध्यान लगाऊंगा -२
दश धर्म निभाऊंगा ----------------दश धर्म मै निभाऊंगा
मै मुक्ति पद पाउँगा ---------------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
29 तर्ज;-रात और दिन दिया जले (रात और दिन)(राग-खमाज)
मेरे मन में फिर भी अँधियारा है
जाने कंहा हो प्रभु तुम
तू जो मिले जीवन उजियारा है ------------रात और दिन
१
पग पग मन मेरा ठोकर खाय
चाँद और सूरज भी राह न दिखाय
ऐसा उजाला कोई मन में समाय
जिससे तिहारा दर्शन मिल जाए ------------रात और दिन
२
देखूं प्रभु जब तुम्हे मन में बसाय
मेरे मन की कलि- कलि ही खिल जाए
ऐसा उजाला कोई मन में समाय
जिससे तिहारा दर्शन मिल जाए ------------रात और दिन
३
कब से भटक रहा प्रभु मै मगर
फिर भी क्यूँ मिली नही सुख की डगर
आज जो देखा प्रभु तुम्हे मन ध्याय
शान्ति ही शान्ति मेरे मन आय ----------रात और दिन
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
08 तर्ज;-जिन्दगी की न टूटे लड़ी -[क्रांति] (राग-हंसध्वनी)
वीर भजले घड़ी दो घड़ी
अपनी काया की नौकरिया छोडो
आतम की लगी है बड़ी ------------वीर भजले घड़ी दो घड़ी
१
उस धन का तो होना भी क्या
जिस धन से भलाई न हो
ऐसा जीना भी जीना नहीं
जिसमे मन में दया ही न हो -------------हो दया ही न हो
मन में ज्योति जलेगी तभी ------------वीर भजले घड़ी दो घड़ी
२
आज से कर लो वादा सभी
दश व्रत पूरे करेगें सदा
मुक्ति पथ पर चलेगें सभी
प्रभु का साथ पायें सदा -----------------हो मोह माया की
मोह माया की किसको पड़ी ---------------वीर भजले घड़ी दो घड़ी
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Thursday, August 7, 2008
09 तर्ज;-दल बादल बिच चमक्या जू तारा [मारवाडी]
म्हारी नैय्या पार करो भव सागर स्यूं ,म्हारी नैय्या पार करो भव स्यूं
जल स्यूं पूजा म्हे चंदन स्यूं पूजा ,कि अक्षत पुष्पा री माला स्यूं पूजा
म्हारी नैय्या पार करो भव सागर स्यूं ,म्हारी नैय्या पार करो भव स्यूं
मीठा मीठा नैवेध चढावा, कि दीपा री ज्योति स्यूं हियो उमगावा
म्हारी नैय्या पार करो भव सागर स्यूं ,म्हारी नैय्या पार करो भव स्यूं
चंदन अगर कपूर जलावा,कि शिवपुर जाबा ताई फल भी चढावा
म्हारी नैय्या पार करो भव सागर स्यूं ,म्हारी नैय्या पार करो भव स्यूं
आठो दरब स्यूं म्हे पूजा रचाई ,कि पारस री पूजा है अति सुखदाई
म्हारी नैय्या पार करो भव सागर स्यूं ,म्हारी नैय्या पार करो भव स्यूं
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Wednesday, August 6, 2008
06 तर्ज;-तू बोल बोल रे बोल तमूरा भाई रे -मारवाडी -लाल सोट
जिवडा न जीणों सिखाई रे
तू बोल तमूरा भाई रे '''''''बोल
१
साँची साँची बोल तमूरा -कुण थारो संगी साथी -२
कुण इसो जो मरबा पाछ -थार संग संग जासी
तमूरा भाई रे
मरघट तक साग जासी
त न बाल बे पाछा आसी
त न भलो बुरो बे केसी
थारी सम्पति बाँट बे खासी
थार कर्मा रो बोझो बाँटण न -त न अंगुठो दिखासी
बावला भाई रे -जिवडा न जीणों सिखाई रे '''''''''बोल
२
आँख स्यूं गीड,कान स्यूं कीटी नाक स्यूं सेडो आव -२
इण काया र हर छेदा स्यूं मैल ही बाहर आव
तमूरा भाई रे
काया म मत रम जाई रे
काया तो मैल री ढेरी
बदबू मार बहुतेरी
तूं मल मल साबूण खूब नहाव - साफ नहीं आ हुयी
बावला भाई रे -जिवडा न जीणों सिखाई रे ''''''''''''''''बोल
३
तीन लोक म कर्म न ,सब स्यूं ताक़तवर बतलाव -२
कर्म कोई न छोड़ कोनी,तीर्थन्कर दुःख पाव
तमूरा भाई रे
तू कर्मा स्यूं घबराई रे
जे चोखा कर्म क र लो
स्वर्गा म पाँव धर लो
जे खोटा कर्म करय्या तो ,नरक निगोद म जाय पड़ लो
बावला भाई रे -जिवडा न जीणों सिखाई रे ''''''''''''''''''''''''बोल
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
07 तर्ज;-सैय्या दिल में आना रे (बहार)
सैया मन्दिर जाना रे
दर्शन कर के आना रे
प्रभु को शीश झुकाना रे ----------सुन सैया सुन सुन
अक्षत अर्घ चढाना रे
गंधोदक लगाना रे
आरती कर के आना रे ----------सुन सैया सुन सुन
अंतरा १
मन्दिर में पारस प्रभु की ,मोहनी मूरत होगी -२
भक्ति के गीत गाते,भक्तो की टोली होगी
तूं भी संग संग उनके पूजा कर आना रे -----सैया मन्दिर जाना रे
२
पूजा की थाली होगी, केसर की प्याली होगी -२
दीपों की जगमग करती ,छटा निराली होगी
श्री जी को अर्घ चढा कर आना रे ---------सैया मन्दिर जाना रे
३
फलो की थाली होगी ,शास्त्र जिनवाणी होगी -२
श्री जी के पास में ही चांदी की माला होगी
माला प्रभु जी की तुम फेर के आना रे --------सैया मन्दिर जाना रे
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Tuesday, August 5, 2008
05 तर्ज- हो वामा जी रा बेटा ,अश्वसेन जी रा लाला ,वाराणसी रा सरदार (लोक गीत) राजस्थान
म्हारो हेलो सामलो नी ओ बाबा नी
ओ बाबा म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी
हे लो ओ बाबा हे लो -२
१
जलते देख नाग नागिन को णमोकार सुनाया नी -२
इन्द्र नरेन्द्र फनेंद्र सभी थार चरणों में शीश झुकाया नी -२
हे &&&& हे हे -हे हे -हे
हो मुक्ति रा भरतार,थार चरणा म संसार ,गाव थारी जय जय कार
म्हारो हेलो सामलो नी हो बाबा नी
हो बाबा म्हारो हेलो सामलो नी बाबा नी
२
लख चौरासी फिरतो आयो पायो नहीं सहारो-२
दीन दयाल कृपा कर राखो म्हे चाकर हूँ थारो -२
हे &&&& हे हे -हे हे -हे
हो शिखरजी रा राजा,आजा म्हान राह दिखा जा
म्हारो कर द बेडा पार,म्हे तो हो जांवा निहाल
थारी महिमा अपरमपार
म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी
हो बाबा म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी
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रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Sunday, August 3, 2008
04 तर्ज;-आंखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं है -(फिल्म -ॐ शान्ति ॐ) ( राग-पहाङी)
दिssया जलाऊं -अर्घ चढाऊं ,मन में --हुल्साऊं
१
तेरे चरणों में मिलता ,मेरे मन को चैन है
मन हो जाए फूल सा कोमल ,मिटते मन के मैल है
तेरे चरणों में ध्यान लगा के लगा के मै तप जाऊँ
तेरे ज्ञान की जोत हिये में जलाये ही मर जाऊँ -ओ ओ
प्रभु मै तो थारी पूजा पाठ ---------------------
२
कैसे छोड़ी ईर्ष्या को ,कैसे छोड़ा क्रोध को
कैसे जीती काम वासना ,कैसे जीता मोह को
मै तो ये छोड़ नहीं पाया ,प्रभु इक पल को
अचरज है ये जीत लिया प्रभु तुमने इन सबको -ओ ओ
प्रभु मै तो थारी पूजा पाठ ---------------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
Saturday, August 2, 2008
25 तर्ज;- मारवाडी -ल्याय बीणणी निरखू म्हे तो
सगळा साथी छोड़ अठ ओ जीव अकेलो जाव लो
१
कंहा गए चक्री जिन जीता ,भरतखंड को सारा था
कंहा गए वह राम और लक्षमण जिन रावण को मारा था
कंहा कृष्ण रुक्मणी सत भामा और उनकी सम्पति सारी
कंहा गए वह रंग महल और सुवरण की नगरी प्यारी
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया -------------------
२
सूरज चाँद छिपे निकले, ऋतू फिर फिर कर आती जावे
प्यारी आयु ऐसी बीते, पता नहीं तुझको पावे
पर्वत-पतित-नदी -सरिता जल, बहकर भी नहीं हटता है
श्वास चलत यों घटे , काठ ,ज्यों आरे सों यूँ कटता है
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ---------------------
३
जन्मे मरे अकेला चेतन ,सुख दुःख का तूं ही भोगी
और किसी का क्या, इक दिन यह तेरी देह जुदा होगी
जबरन चलते साथ, जाय मरघट तक तेरे परिवारा
अपने अपने सुख को रोवे ,पिता पुत्र तेरे दारा
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ------------------
रचयिता - साभार जिनवाणी
Friday, August 1, 2008
24 तर्ज ;-जरा सामने तो आओ छलिये (जनम जनम के फेरे) (राग-शिवरंजनी)
तेरे दर पे खड़ा हूँ प्रभु वीर जी
मेरे मन में तूं जाने है क्या बात है
तुझे सुननी पड़ेगी फरियाद अब
मेरी आत्मा की ये आवाज है
१
हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो , ऐसा कभी नहीं हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ कर, सुख से कभी ना रह सकता
मुझसे यूँ नाराजी की क्या बात है
मेरा मन तो तेरे चरणों का दास है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है --------तेरे दर पे ---------
२
मोह माया में फंसा हुआ मै कब से भटकता ओ जिनजी
दुःख में पुकारूँ तुमको प्रभु मै ,सुख में भूल जाऊं जिनजी
मेरा मन तो पापों का भंडार है
गलती कर कर के करता पुकार है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है
३
दयावान तूं क्षमावान् तूं ,करता ज्ञान का है प्रकाश
मुझ अज्ञानी आतम में भी, सम्यक ज्ञान का कर दे प्रकाश
मेरी नैया तो अब तेरे हाथ है
भव सागर में इक तेरा साथ है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है ------------तेरे दर पे -----------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
03 तर्ज;- ओ म्हानः रमता न काजल टीकी (होली गीत मारवाङी)
पूजन करबा म्हें जा स्यां- प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां
ओ म्हान् केशरिया कपड़ा रंगा द ऐ माँ-२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां
ओ म्हान् पूजा ताई लाडू पेडा ल्याद ऐ माँ -२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां
ओ म्हान् दश धर्मा रो ज्ञान थोड़ो दीजे ऐ माँ -२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
23 तर्ज;-दस बहाने करके ले गई दिल (दस)
है ना -है ना ,देखो जिनवर की भक्ति में जादू
है ना -है ना ,देखो जिनवर की भक्ति में जादू
उसकी आँखों में चमके चंदा और तारे
सेय है ना है ना ---सेय है ना है ना
उसकी आँखों में चमके ,चंदा और तारे
तारा उसने बहुतों को ,मुझको भी तारे
उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव ,सत शौच संयम अपनाओ
उत्तम तप त्याग आकिंचन और ब्रहमचर्य धर्म निभाओ
दश धर्म की महिमा अपरमपार-अपरमपार
दस धर्म की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
अंतरा-१
है ना है ना -देखो जिनवर की भक्ति में जादू
है ना है ना -सेय है ना है ना
ये दिल तो पहले -पापी बहुत था
पापों में डूबा हरदम -कर ता धरम क्यूँ
दुःख ने जब घेरा -सब ने मुंह फेरा
मन में यूँ सोचा -अबतक बना मै मुरख क्यूँ
जिनवर की --शरण में
आया हूँ मै --जब से
मिल गई है --सुख शान्ति
जिन जी के -चरण में
दश धरम की महिमा अपरमपार -अपरमपार
दश धरम की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
है ना है ना -सेय है ना है ना
२
मानव जीवन की ,गाथा निराली
चारों गतियों में सबसे अलग महान है
स्वर्गो में नहीं , मिलते देवों को
तप और त्याग के ये अवसर महान है
थोड़ा सा टाइम तूं
तप त्याग में लगाले
दश धर्मो के द्वारा
कर्मो को --जलाले
दश धर्म की महिमा अपरमपार -अपरमपार
दश धर्म की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
है ना है ना सेय है ना है ना
उसकी आंखों में चमके चंदा और तारे
तारा उसने बहुतों को मुझको भी तारे -----उत्तम क्षमा -------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै