44 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ]
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ओह रे जीव फिरे भव सागर में
चारों गती नापे रे
सुखी दुखी कर्मो से होवे - नहीं जाने रे
१
रिश्ते नातो में उलझा - सुखी दुखी होता है -२
काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -२
ओ मितवा रे -S S S S S S S
काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -
कोई ना जाये संग में नहीं माने रे -ओह रे -------------
२
जन्मो जन्मो की कषायो ,में लिपटी आत्मा -है लिपटी आत्मा
क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -२
ओ मितवा रे -S S S S S S S
क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -
क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना -
ओह रे जीव फिरे भव सागर में ---------------
रचयिता -राजू बगडा
ता ;०८. ०९.२०१३
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