Sunday, September 8, 2013

44 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ]

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http://sound11.mp3slash.net/indian/anokhi_raat1968/anokhiraat03%28www.songs.pk%29.mp3 

ओह रे जीव फिरे भव  सागर में 

चारों गती  नापे रे 

सुखी दुखी कर्मो से होवे - नहीं जाने रे 

१ 

रिश्ते नातो  में उलझा - सुखी दुखी होता है -२ 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -

कोई ना जाये संग में नहीं माने रे -ओह रे -------------

२ 

जन्मो जन्मो की कषायो ,में लिपटी आत्मा -है लिपटी आत्मा 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -

क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना -

ओह रे जीव फिरे भव सागर में ---------------

रचयिता -राजू बगडा 

ता ;०८. ०९.२०१३

 


 

 


 


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