थारी म्हारी छोड़ द भाया,कोई न साथ जाव लो
सगळा साथी छोड़ अठ ओ जीव अकेलो जाव लो
१
कंहा गए चक्री जिन जीता ,भरतखंड को सारा था
कंहा गए वह राम और लक्षमण जिन रावण को मारा था
कंहा कृष्ण रुक्मणी सत भामा और उनकी सम्पति सारी
कंहा गए वह रंग महल और सुवरण की नगरी प्यारी
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया -------------------
२
सूरज चाँद छिपे निकले, ऋतू फिर फिर कर आती जावे
प्यारी आयु ऐसी बीते, पता नहीं तुझको पावे
पर्वत-पतित-नदी -सरिता जल, बहकर भी नहीं हटता है
श्वास चलत यों घटे , काठ ,ज्यों आरे सों यूँ कटता है
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ---------------------
३
जन्मे मरे अकेला चेतन ,सुख दुःख का तूं ही भोगी
और किसी का क्या, इक दिन यह तेरी देह जुदा होगी
जबरन चलते साथ, जाय मरघट तक तेरे परिवारा
अपने अपने सुख को रोवे ,पिता पुत्र तेरे दारा
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ------------------
रचयिता -राजू बगडा-ता ;-१६.०९.१९९६
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