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Sunday, June 7, 2020

65 थोड़ा सा प्यार हुआ है थोड़ा है बाकी(मैने दिल तुझको दिया)

65

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तर्ज़-थोङा सा प्यार हुआ है थोङा है बाकी (मैने दिल तुझको दिया)

हे गुरु वर्धमान जी ,आप ही पूज्य हो

तेरे चरणों में मेरा ,सदा ही शीश हो

गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
1

कमल सी कोमल काया,मनोरम छवी निराली
सनावद गांव से निकले, हो के गुरुवर वैरागी

दिशा जीवन की बदली, ब्रह्मचर्य को धारा 
मनोरमा  कमल का लाला,बना जग का सितारा
धन्य हुआ विश्व सारा,धन्य जैनत्व सारा
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो
2
दिगम्बर मुनि चर्या में ,शिथिलता कभी नहीं की
संघ को एक सूत्र में ,पिरोकर ज्ञान वृद्धि की
सरलता विनयशीलता, गुणों की खान हो गुरुवर
शास्त्र आगम के ज्ञानी, जुबां पर मां जिनवाणी
शान्तिसागर आचार्य ,के परम भक्त हो
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो

हे गुरु वर्धमान जी ,आप ही पूज्य हो
तेरे चरणों में मेरा ,सदा ही शीश हो
गुरुवर वर्धमान जी आप ही पूज्य हो

रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 9.6.2020, 5 pm

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Sunday, September 8, 2019

62 तर्ज-चले जैसे हवाएं सनन सनन, उड़े जैसे परिंदे गगन गगन (मैं हूं ना)

62 तर्ज-चले जैसे हवाएं सनन सनन, उड़े जैसे परिंदे गगन गगन (मैं हूं ना)
ओssssओssssओsssss-2
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम
कर्मो का होगा,दहन दहन
सुख मिल जायेगा, परम परम
हे हे-हे हे, हे हे हो हो sssss
हे हे,हो हो ,आ हाsssssss
मन की रोको हर मनमानी, सारी नादानी
मिल जाएगी मुक्ति रानी,जो है ठानी
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम
1
जिनवाणी हमको समझाये,
गुरुवाणी भी ये समझाये
संयम तप है बड़ा
हम भी संयम धारण करके
तर जाएंगे भव सागर से
संयमी बनेंगे सदा
सच्चे ,जैनी बनके,हम, करेंगे सबका भला
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम---------------
2
उत्तम क्षमा जंहा मन होई
अंदर बाहर शत्रु न कोई
करते है पूजा सदा
क्षमा भावना धारण करके
कोमलता के फूल खिलाके
क्रोध को करके विदा
सच्चे ,जैनी बनके,हम, करेंगे सबका भला
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम
कर्मो का होगा,दहन दहन
सुख मिल जायेगा, परम परम
हे हे-हे हे, हे हे हो हो sssss
हे हे,हो हो ,आ हाsssssss
मन की रोको हर मनमानी, सारी नादानी
मिल जाएगी मुक्ति रानी,जो है ठानी
दश दिन सब करलो ,धरम धरम
तप करके जलालो ,करम करम

रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
ता: 8.9.2019  11.45 Pm
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Tuesday, August 5, 2008

05 तर्ज- हो वामा जी रा बेटा ,अश्वसेन जी रा लाला ,वाराणसी रा सरदार (लोक गीत) राजस्थान

05 तर्ज;- हो वामा जी रा बेटा ,अश्वसेन जी रा लाला ,वाराणसी रा सरदार
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हो वामा जी रा बेटा ,अश्वसेन जी रा लाला ,वाराणसी रा सरदार
म्हारो हेलो सामलो नी ओ बाबा नी
ओ बाबा म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी
हे लो ओ बाबा हे लो -२

जलते देख नाग नागिन को णमोकार सुनाया नी -२
इन्द्र नरेन्द्र फनेंद्र सभी थार चरणों में शीश झुकाया नी -२
हे &&&& हे हे -हे हे -हे
हो मुक्ति रा भरतार,थार चरणा म संसार ,गाव थारी जय जय कार
म्हारो हेलो सामलो नी हो बाबा नी
हो बाबा म्हारो हेलो सामलो नी बाबा नी

लख चौरासी फिरतो आयो पायो नहीं सहारो-२
दीन दयाल कृपा कर राखो म्हे चाकर हूँ थारो -२
हे &&&& हे हे -हे हे -हे
हो शिखरजी रा राजा,आजा म्हान राह दिखा जा
म्हारो कर द बेडा पार,म्हे तो हो जांवा निहाल
थारी महिमा अपरमपार
म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी
हो बाबा म्हारो हे लो सामलो नी बाबा नी

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रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ;-२९.०८.१९९५

Sunday, August 3, 2008

04 तर्ज;-आंखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं है -(फिल्म -ॐ शान्ति ॐ) ( राग-पहाङी)

04 तर्ज;-आंखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं है -(फिल्म -ॐ शान्ति ॐ)( राग-पहाङी)
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प्रभु मै तो थारी ,पूजाsपाठ रचाऊं
ओsओsओsओ,
प्रभु मै तो थारी ,पूजाsपाठ रचाऊं
दिssया जलाऊं -अर्घ चढाऊं ,मन में --हुल्साऊं

तेरे चरणों में मिलता ,मेरे मन को चैन है
मन हो जाए फूल सा कोमल ,मिटते मन के मैल है
तेरे चरणों में ध्यान लगा के लगा के मै तप जाऊँ
तेरे ज्ञान की जोत हिये में जलाये ही मर जाऊँ -ओ ओ
प्रभु मै तो थारी पूजा पाठ ---------------------

कैसे छोड़ी ईर्ष्या को ,कैसे छोड़ा क्रोध को
कैसे जीती काम वासना ,कैसे जीता मोह को
मै तो ये छोड़ नहीं पाया ,प्रभु इक पल को
अचरज है ये जीत लिया प्रभु तुमने इन सबको -ओ ओ
प्रभु मै तो थारी पूजा पाठ ---------------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;-२०.०१.२००८
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Saturday, August 2, 2008

25 तर्ज;- मारवाडी -ल्याय बीणणी निरखू म्हे तो

25
तर्ज;- मारवाडी -ल्याय बीणणी निरखू म्हे तो
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थारी म्हारी छोड़ द भाया,कोई न साथ जाव लो
सगळा साथी छोड़ अठ ओ जीव अकेलो जाव लो

कंहा गए चक्री जिन जीता ,भरतखंड को सारा था
कंहा गए वह राम और लक्षमण जिन रावण को मारा था
कंहा कृष्ण रुक्मणी सत भामा और उनकी सम्पति सारी
कंहा गए वह रंग महल और सुवरण की नगरी प्यारी
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया -------------------

सूरज चाँद छिपे निकले, ऋतू फिर फिर कर आती जावे
प्यारी आयु ऐसी बीते, पता नहीं तुझको पावे
पर्वत-पतित-नदी -सरिता जल, बहकर भी नहीं हटता है
श्वास चलत यों घटे , काठ ,ज्यों आरे सों यूँ कटता है
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ---------------------

जन्मे मरे अकेला चेतन ,सुख दुःख का तूं ही भोगी
और किसी का क्या, इक दिन यह तेरी देह जुदा होगी
जबरन चलते साथ, जाय मरघट तक तेरे परिवारा
अपने अपने सुख को रोवे ,पिता पुत्र तेरे दारा
तो थारी म्हारी छोड़ द भाया ------------------

रचयिता - साभार जिनवाणी
ता ;-१६.०९.१९९६
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Friday, August 1, 2008

24 तर्ज ;-जरा सामने तो आओ छलिये (जनम जनम के फेरे) (राग-शिवरंजनी)

24 
तर्ज ;-जरा सामने तो आओ छलिये (जनम जनम के फेरे)  (राग-शिवरंजनी)
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तेरे दर पे खड़ा हूँ प्रभु वीर जी
मेरे मन में तूं जाने है क्या बात है
तुझे सुननी पड़ेगी फरियाद अब
मेरी आत्मा की ये आवाज है

हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो , ऐसा कभी नहीं हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ कर, सुख से कभी ना रह सकता
मुझसे यूँ नाराजी की क्या बात है
मेरा मन तो तेरे चरणों का दास है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है --------तेरे दर पे ---------

मोह माया में फंसा हुआ मै कब से भटकता ओ जिनजी
दुःख में पुकारूँ तुमको प्रभु मै ,सुख में भूल जाऊं जिनजी

मेरा मन तो पापों का भंडार है
गलती कर कर के करता पुकार है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है

दयावान तूं क्षमावान् तूं ,करता ज्ञान का है प्रकाश
मुझ अज्ञानी आतम में भी, सम्यक ज्ञान का कर दे प्रकाश
मेरी नैया तो अब तेरे हाथ है
भव सागर में इक तेरा साथ है
यूँ ठुकराओ ना ओ म्हारा वीरजी
मेरी आत्मा की ये आवाज है ------------तेरे दर पे -----------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;-२६.०९.१९८२
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03 तर्ज;- ओ म्हानः रमता न काजल टीकी (होली गीत मारवाङी)

03
तर्ज;- ओ म्हानः रमता न काजल टीकी (होली गीत मारवाङी)
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ओ म्हान -पूजा रो थाल सजा द ऐ माँ-२
पूजन करबा म्हें जा स्यां- प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां

ओ म्हान् केशरिया कपड़ा रंगा द ऐ माँ-२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां

ओ म्हान् पूजा ताई लाडू पेडा ल्याद ऐ माँ -२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां

ओ म्हान् दश धर्मा रो ज्ञान थोड़ो दीजे ऐ माँ -२
पूजन करबा म्हें जा स्यां -प्रभु की पूजन करबा म्हें जा स्यां

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;-२६.०९.१९९३
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23 तर्ज;-दस बहाने करके ले गई दिल (दस)

23 
तर्ज;-दस बहाने करके ले गई दिल (दस)

है ना -है ना ,देखो जिनवर की भक्ति में जादू
है ना -है ना ,देखो जिनवर की भक्ति में जादू

उसकी आँखों में चमके चंदा और तारे
सेय है ना है ना ---सेय है ना है ना
उसकी आँखों में चमके ,चंदा और तारे
तारा उसने बहुतों को ,मुझको भी तारे
उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव ,सत शौच संयम अपनाओ
उत्तम तप त्याग आकिंचन और ब्रहमचर्य धर्म निभाओ
दश धर्म की महिमा अपरमपार-अपरमपार
दस धर्म की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
अंतरा-१

है ना है ना -देखो जिनवर की भक्ति में जादू
है ना है ना -सेय है ना है ना

ये दिल तो पहले -पापी बहुत था
पापों में डूबा हरदम -कर ता धरम क्यूँ
दुःख ने जब घेरा -सब ने मुंह फेरा
मन में यूँ सोचा -अबतक बना मै मुरख क्यूँ
जिनवर की --शरण में
आया हूँ मै --जब से
मिल गई है --सुख शान्ति
जिन जी के -चरण में
दश धरम की महिमा अपरमपार -अपरमपार
दश धरम की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
है ना है ना -सेय है ना है ना

मानव जीवन की ,गाथा निराली
चारों गतियों में सबसे अलग महान है
स्वर्गो में नहीं , मिलते देवों को
तप और त्याग के ये अवसर महान है
थोड़ा सा टाइम तूं
तप त्याग में लगाले
दश धर्मो के द्वारा
कर्मो को --जलाले
दश धर्म की महिमा अपरमपार -अपरमपार
दश धर्म की महिमा अपरमपार -इट्स ओनली हेपनिंग हियर
है ना है ना सेय है ना है ना
उसकी आंखों में चमके चंदा और तारे
तारा उसने बहुतों को मुझको भी तारे -----उत्तम क्षमा -------------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता;३१.०८.२००६
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Thursday, July 31, 2008

01 तर्ज;-रिम झिम के गीत सावन गाये-हाय -भीगी भीगी रातों में

01
तर्ज;-रिम झिम के गीत सावन गाये-हाय -भीगी भीगी रातों में (अंजाना) राग-शिवरंजनी+कीरवानी)
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मन्दिर में दीप झिलमिलाये -हाये
भगवन तेरी आंखों के

तीनों लोकों का धन तेरे पास था
तेरे जीवन में कुछ ना अभाव था
फिर भी त्यागा -जो कुछ तेरे पास था
क्योंकि नशवर काया का तुझे ज्ञान था
तेरे ज्ञान -की जोत बिखराए -हाये
भगवन तेरी आंखों से ----------------मन्दिर में ------

इन्द्रिय सुख को मै हरदम चाहता
नशवर काया पे सब कुछ लुट्टावता
मेरा दुःख से सदा ही रहता वास्ता
क्योंकि आधी अधूरी तुझ पर आस्था
मुझ में ज्ञान की जोती जगा दे -हाये
भगवन तेरी आंखों से ---------------मन्दिर में -------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
२७.०८.२००६
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Wednesday, July 30, 2008

02 तर्ज -पल पल दिल के पास तुम रहती हो (ब्लेकमेल)( राग-यमन)

02 
तर्ज -पल पल दिल के पास तुम रहती हो (ब्लेकमेल) (राग-यमन)
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पा- रस तेरो नाम, मन को भाए
जीवन में मुस्कान ,तू ले आए
अंतरा-१
पा का मतलब है -पापो, से मुक्ति दिलाने वाला
र का मतलब है -राग औ ,द्वेषो को मिटाने वाला
स सच्ची राह बताये
ना नफरत दूर भगाए
थ थाम के बाहें भव सा -गर को तू पार कराये
हे पारसनाथ तभी तूं, त्रिलोकी नाथ कहाए ------------
पारस तेरो नाम -----------------------

नित तेरा ध्यान करूँ ,तेरा गुण गान करूँ
मेरे कर्म सभी कट जाए ,तेरा आव्हान करूँ
सम्यक दर्शन करवाना
सम्यक का ज्ञान कराना
सम्यक चारित्र की राहों , पे तू चलना सिखलाना
जब तक ना मिले मुझे मुक्ति ,तूं मेरा साथ निभा -ना -------------------
पारस तेरो नाम -----------
रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
30.7.2008
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