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Friday, September 21, 2018

56 तर्ज- मेरी भीगी भीगी सी पलकों में रह गए,(अनामिका)

हे पार्श्व प्रभु, तेरे चरणों में
हम   रोज   नमन   करते 
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
1
तुम्हें बिन जाने,बिन पहचाने,जन्म अनेकों गंवाये  - 2
आज हमें जब  ज्ञान मिला तो,तेरे चरणों में आये
चारों गतियों में दुःख जो उठाये
तड़प के आहे भर भर के
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
2
तू ही इक सहारा ,नश्वर जग में,भव से जो पार कराये  - 2
जनम जनम के पाप करम से,हम को भी मुक्ति दिलाये
ऐसी ही आशा, ले के हम आये
तेरी दया पाने को
करे मन मेरा भी,तुम सा बनूं मैं
कर्म के बन्धन छूटे
हे पार्श्व प्रभु...........
रचयिता -राजू बगड़ा ,मदुरै -22.9.2018/12.30 am  
www.rajubagra.blogspot.com

Tuesday, September 10, 2013

47 तर्ज -सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मै [आशिकी 2 ]



तेरे  चरणों में दौड़े  आये
वीरा ssss  वीरा ssssss  वीरा sssss

मुझको  ये  ज्ञान  दे
आतम  का भान  दे
मेरी काया से मुझको   थोड़ा  तॊ  बैराग दे

क्षमा  का  भाव  दे
दया का   भाव   दे
मुझ पर हो जाये कृपा थोड़ा आशीर्वाद  दे

तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै


मोह का अँधियारा , खुद को भुला दिया
पर को निज समझा , पापों से  घिर गया
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै


धन मैं ने  कमाया ,जीवों को मार के
बिलकुल  निर्दयी हूँ , लालच के भाव  से
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै

रचयिता -राजू बगडा
ता ; 10. 09. 2013







Sunday, September 16, 2012

40 तर्ज ;-ओ फिरकी वाली ,तू कल फिर आना [राजा और रंक ]


ओ पिच्छी वाले ,
हम शीश झुकाए ,तेरे गुण गाये ,मन- वचन और काय से
कि अब जाना है हमें भव पार से
1
तेरी तपस्या की ,क्रिया- को देख देख कर -2
सबको अचरज होता है
कैसे कर लिया ,मन इन्द्रियों को वश में
सबको विस्मय होता है
सर्दी गर्मी -2,हो या बारिश ,कोई फरक नहीं पड़ता
तूने छोड़ा- है घर-बार  सारा ,एशो आराम सारा
और निकला है शान से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------
2
तेरे उपदेश की, ये बाते  सुन सुन के -2
मन बैराsगी होता है
मन में छुपे हुए ,जो अव-गुण सारे
धुल के निर्मल होता है
 एक बार तू -2 हाथ फिरा दे ,दया से मेरे सर पे
मिट जाये -विकार मेरे सारे ,हो जाये वारे न्यारे
तेरे उपकार से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------

रचयिता
राजू बगडा
ता ;-16.9.2012