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Sunday, September 8, 2013

44 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ] (राग पीलू)

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 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ]  (राग पीलू)

ओह रे जीव फिरे भव  सागर में 

चारों गती  नापे रे 

सुखी दुखी कर्मो से होवे - नहीं जाने रे 

१ 

रिश्ते नातो  में उलझा - सुखी दुखी होता है -२ 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -

कोई ना जाये संग में नहीं माने रे -ओह रे -------------

२ 

जन्मो जन्मो की कषायो ,में लिपटी आत्मा -है लिपटी आत्मा 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -

क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना -

ओह रे जीव फिरे भव सागर में ---------------

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै

ता ;०८. ०९.२०१३

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Sunday, September 23, 2012

41 तर्ज-मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली [राजा और रंक ](अलैया बिलावल)

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तर्ज-मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली [राजा और रंक ](अलैया बिलावल)
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से
मेरा कोई नहीं है अपना
फिर भी मानू  सबको अपना
दुखी होती रहती, जनम मरण  के फेर में
1
स्वर्गो में मैं जाय  विराजी ,इर्ष्या  से जल जल  गयी 2
नरको में जब पहुँची तो ,बदले की, आग में जल गयी
रे सुख न मिला मुझे इक पल को s s s s s
मैं हूँ मूरख ,मैं अज्ञानी ,सुनलो मेरी कहानी
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से
2
मनुज जनम पाया है मैंने ,मुश्किल से अब जाके 2
सुख की छाँव मिली है मुझको, तेरा दर्शन पाके
ओ प्रभुजी मेरी अब सुध ले लो s s s s s
मैं हूँ मूरख ,मैं अज्ञानी ,सुनलो मेरी कहानी
मैं हूँ आत्मा अकेली
मैं हूँ जनम जनम से मैली
पांचो इन्द्रियों और पापी मन के संयोग से

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता -23.9.2012
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