गुरु हे विराग सागर,छवि मनोहारी-2
दुनियां झुके, तेरी महिsमा निराली
गुरु हे विराग सागर-
ज्ञान सुधा बरसाती, छवि है दुलारी
जिनवाणी मुख से,तेरे लगे अति प्यारी
गुरु हे विराग सागर-२
1
कपूर का लल्ला,श्यामा का तारा-2
चमका पथरिया नगर का सितारा
धन्य हुआ जन, गण मन सारा
श्री गुरु ने वैsराग्य को धारा
गुरु हे विराग सागर-
2
पंचम काल की,कठिन तपस्या
करते है शिष्यों की कठिन परीक्षा
आगम सुगम बनाते जाते
भाषा सरल करत समझाते
गुरु हे विराग सागर-
3
सोलह भावना दिल से है भायी
दश धर्मो में ही देह तपायी
ज्ञान का लक्ष्य चरिsत्र बनाया
मोक्ष ही जाने का निश्चय बनाया
गुरु हे विराग सागर-
Note: सभी अन्तरो की राग एक ही है
रचयिता राजू बगड़ा, मदुरै
ता:29.4.20
6.00pm