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Saturday, September 22, 2018

57 तर्ज- दंगल दंगल (दंगल)

रे इंसा जाग तूं
रे इंसा सुण ले तूं
रे  हिंसा त्याग तूं
रे जैनी बण जा तूं
मां के पेट से मरघट तक है, तेरी कहानी, सुण ले प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
सांसे तेरी रुकती चलती, थम जाएगी इक दिन प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
क्रोध की लपटों में,
मन झुलस जाता है
उनको फिर बुझा
करदे फिर क्षमा
बात बन जाती है
--
बुलबुला पानी का
तेरा प्यारा जीवन
किसको है पता
हो के फट फटा
सांसे रुक जाती है
तो जिनवाणी तुझको समझाये,
मोह माया को त्याग दे प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
सांसे तेरी रुकती चलती, थम जाएगी इक दिन प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
1
रे इंसा सुण ले  तूं,रे जैनी बण जा तूं
रे इंसा सुण ले तूं, रे  हिंसा त्याग तूं
पांच है घोड़े  तेरे,पांच ये तेरी इंद्रिया
मन बना तेरा सारथी,रथ बनी तेरी काया
रथ में है आ के बैठी ,आतमा बन के राजा
मर्जी है जिधर हाँक ले ,
तेरी चाकरी करे है मनवा,$$$$$$$
अरे,जैन मुनि को देख के प्यारे,तू भी तप कर ले रे प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
सांसे तेरी रुकती चलती, थम जाएगी इक दिन प्यारे
आतम आतम,आतम आतम
मां के पेट से मरघट तक है, तेरी कहानी-----------

रचयिता-राजू बगड़ा, मदुरै 23.9.2018 /1.30am
www.rajubagra.blogspot.com

Thursday, September 17, 2015

49 तर्ज -परदे में रहने दो पर्दा ना उठाओ -[शिकारी ]


जैसा जो बोयेगा ,वैसा वो पायेगा -२
बोया है जो बबुल  , तो कांटे ही पायेगा
पापो से करले तौबा -करले पापो से तौबा

पाप के फंदे तू खुद बुनता है
बुनके फंदो  को तू खुश होता है
जब भी , दुखो की बाढ़ आती है -२
रोते रोते ही -२ जान जाती है -
                            हा तो -जैसा जो बोयेगा

दश धर्मों के -  दस दिन आये है
पापो से -बचने के दिन आये है
अपनी काया को, अब  तपाले तू -२
याद रखना फिर  -२ मुक्ति पाओगे
                             हा  तो -जैसा जो बोयेगा

रचयिता -राजू बगड़ा
ता -16 . 09 . 2015
11 . 55 pm

Thursday, August 28, 2014

42 tarj-फूलों का तारों का सबका कहना है

तर्ज -फूलों का तारों का सबका कहना है [हरे रामा हरे कृष्णा ]


पर्युषण पर्व का यही कहना है 
निज आतम शुद्धि में सबको रहना है 
सारी - उमर, दश धर्म करना है 
१ 
जीव अकेला करता है ,चारों गति में वास 
सुख दुःख भोगा करता,बुन के कर्मो के जाल 
आ मेरे संग आ ,पूजन करना है 
निज आतम शुद्धि से ध्यान में रहना है 
सारी - उमर, दश धर्म करना है 
२ 
सम्यक दर्शन ज्ञान चरित की ,महिमा है अपार 
निज पर शासन करने से ,होता है उद्धार 
आ मेरे संग आ ,पूजन करना है 
निज आतम शुद्धि से ध्यान में रहना है 
सारी - उमर, दश धर्म करना है 

रचयिता -राजू बगड़ा 
ता;-२९ अगस्त २०१४ 
१.१५ AM