ओ पिच्छी वाले ,
हम शीश झुकाए ,तेरे गुण गाये ,मन- वचन और काय से
कि अब जाना है हमें भव पार से
1
तेरी तपस्या की ,क्रिया- को देख देख कर -2
सबको अचरज होता है
कैसे कर लिया ,मन इन्द्रियों को वश में
सबको विस्मय होता है
सर्दी गर्मी -2,हो या बारिश ,कोई फरक नहीं पड़ता
तूने छोड़ा- है घर-बार सारा ,एशो आराम सारा
और निकला है शान से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------
2
तेरे उपदेश की, ये बाते सुन सुन के -2
मन बैराsगी होता है
मन में छुपे हुए ,जो अव-गुण सारे
धुल के निर्मल होता है
एक बार तू -2 हाथ फिरा दे ,दया से मेरे सर पे
मिट जाये -विकार मेरे सारे ,हो जाये वारे न्यारे
तेरे उपकार से
कि अब जाना है मुझे भव पार से -ओ पिच्छी वाले-----------
रचयिता
राजू बगडा
ता ;-16.9.2012
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