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कि प्राणी बच नहीं सकता -कभी कर्मो के घेरो से
कि प्राणी बच नहीं सकता -कभी कर्मो के घेरो से
और मुक्ति पा नहीं सकता-बिना उनको जलाने से
स्थायी
मै मंदिर रोज जाऊ
मै पूजा रोज करू
मै सामायिक भी करू
हो अब और प्रभु क्या क्या करू
कर्मो ने मुझे घेरा
घेरा मुझे घेरा -कर्मो ने है घेरा-२
कर्मो के चक्करों में फंसा
भगत सीधा सादा
घेरा मुझे घेरा -कर्मो ने है घेरा-२
१
ये कैसे कर्म है जी -मुझे छोड़े ही नहीं
कभी दुःख को दिखाते -कभी सुख को दिखाते
कभी मनुष्य गति -कभी तिर्यंच गति
कभी नरको की गति-कभी स्वर्गो की गति
जंहा पे लेके जाते -वहीँ का ही बनाते
और कभी पागल बनाते-कभी मूरख बनाते-२
अगरचे खूब ये कर्म -बड़े चालू है ये कर्म-२
कर्म कैसी बला है-या कोई जलजला है
किसी शास्त्री से पूछो
किसी पंडित से पूछो
कर्मो की कैसी लीला
कर दिया मुश्किल जीना
हो &&&&& दामन में मेरे फूल है कम -और कांटे है जियादा
घेरा मुझे घेरा-------------------
२
कभी शुभ कर्म आते -कभी अ-शुभ भी आते
कभी दोनों रुलाते -कभी दोनों हंसाते
कभी राजा बनाते-कभी ये रंक बनाते
कभी सब कुछ दिलाते -कभी सब कुछ ले जाते
मुनि तपस्या करते -ये उन्हें भी डराते
और कभी अन्तराय लाते-तपस्या भंग कराते-२
मगर छोड़े नहीं किसी को -चाहे भगवान भी वो हो-२
दिखा के रूप अपना -नचाते हर किसी को
बुलाये छाँव कोई
पुकारे धूप कोई
तेरा हो रंग कोई
तेरा हो रूप कोई
हो &&&&& कुछ फर्क नहीं नाम तेरा-अच्छा हो या बुरा
घेरा मुझे घेरा-कर्मो ने है घेरा
कर्मो के चक्करों में फंसा
भगत सीधा सादा
घेरा मुझे घेरा------------------------------
रचयिता
राजू बगडा
ता; ६.९.२०११
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