Tuesday, September 10, 2013

47 तर्ज -सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मै [आशिकी 2 ]


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तर्ज -सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मै [आशिकी 2 ]
तेरे  चरणों में दौड़े  आये
वीरा ssss  वीरा ssssss  वीरा sssss

मुझको  ये  ज्ञान  दे
आतम  का भान  दे
मेरी काया से मुझको   थोड़ा  तॊ  बैराग दे

क्षमा  का  भाव  दे
दया का   भाव   दे
मुझ पर हो जाये कृपा थोड़ा आशीर्वाद  दे

तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै


मोह का अँधियारा , खुद को भुला दिया
पर को निज समझा , पापों से  घिर गया
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै


धन मैं ने  कमाया ,जीवों को मार के
बिलकुल  निर्दयी हूँ , लालच के भाव  से
ये मेरी कहानी है जो तुमको सुनानी है ss ओ sssss
तेरे  चरणों  में  दौड़े  आये
कर  दे  इधर  भी  तू  निगाहे
सुन  रहा है ना तू, बु ला  रहा हूँ  मै
सुन रहा है ना  तू, बु  ला  रहा हूँ  मै

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ; 10. 09. 2013
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46 तर्ज -क्योंकि तुम ही हो [आशिकी 2 ](आसावरी थाट)


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तर्ज -क्योंकि तुम ही हो [आशिकी 2 ](राग-आसावरी थाट)

हम  तेरे  चरणों  में आये है जिनवर
अपना शीश झुकाने को
तुझ को छू  कर मिल जाये मुक्ति

है विश्वास   मेरे मन को

क्यूँ कि  तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो

तेरा मेरा रिश्ता पुराना
भक्ति कभी टूटी ही नहीं
मै कभी तुमसे दूर हुआ पर , तुमने  मुंह मोड़ा ही नहीं
हर जनम में तुमने संभाला मुझे
मुझे सम्यक ज्ञान करा के sssss

क्यूँ कि  तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो


मेरे लिए ,ही जिया मै , हूँ स्वार्थी
कर दिया है ,भोगो में जिन्दगी को  पूरा -सारी अच्छाइयों को  छोड़ा

हर जनम में तुमने संभाला मुझे
मुझे सम्यक ज्ञान करा के sssss

क्यूँ कि  तुम ही हो
अब तुम ही हो
वीर प्रभु अब तुम ही हो
चैन भी ,विश्वास भी ,महावीर स्वामी तुम ही हो

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ; १०. ०९. २०१३
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Sunday, September 8, 2013

43 तर्ज -जीने लगा हूँ पहले से ज्यादा [रमैया वस्तावैया ](राग-यमन)

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तर्ज -जीने लगा हूँ पहले से ज्यादा [रमैया वस्तावैया ]
(राग-यमन)
करने लगा हूँ  भक्ति प्रभु की
पहले से ज्यादा अब मै करने लगा हूँ
ओ ssssss ओ sssssss ओ ssssss

मै तेरे ध्यान में डूबा रहूँ
 खुद की मै  पहचान करता रहूँ
जीना मुझे तू सिखाता रहे
कर्मो का मैल हटाता रहूँ
करने लगा हूँ  भक्ति प्रभू  की ------------

जन्म जन्म के मेरे संस्कार कैसे
उलझा हुआ हूं झूठी माया में ऐसे
झूठी माया में  मै   उलझा ,जनम  जनम से कैसे
तेरी शरण में आया भगवन मुझको बचाले भव से

तुझ से ही शक्ति मिलती मुझे है
भक्ति में तेरी अब मै बहने लगा ------ओ sssss

उत्तम क्षमा के फूल खिलने लगे है
हिंसा के कांटे मन से खिरने लगे है
फूल क्षमा के अब तो मेरे, मन में खिलने लगे है
तेरे ध्यान से क्रोध के कांटे ,मन से खिरने लगे है
तुझ से ही शक्ति मिलती मुझे है
भक्ति में तेरी अब मै बहने लगा ----ओ ssssss

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै
ता ;०८. ०९. २०१३
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44 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ] (राग पीलू)

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 तर्ज - ओह रे ताल मिले नदी के जल में [अनोखी रात ]  (राग पीलू)

ओह रे जीव फिरे भव  सागर में 

चारों गती  नापे रे 

सुखी दुखी कर्मो से होवे - नहीं जाने रे 

१ 

रिश्ते नातो  में उलझा - सुखी दुखी होता है -२ 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

काया धन दौलत पाके -अभिमानी होता है -

कोई ना जाये संग में नहीं माने रे -ओह रे -------------

२ 

जन्मो जन्मो की कषायो ,में लिपटी आत्मा -है लिपटी आत्मा 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -२ 

ओ मितवा रे -S S S S S S S 

क्षमा के नीर से धोले -कहते परमात्मा -

क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना -

ओह रे जीव फिरे भव सागर में ---------------

रचयिता -राजू बगडा-"राजकवि"(सुजानगढ़)मदुरै

ता ;०८. ०९.२०१३

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