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तर्ज मैं शायर तो नहीं,मगर ए हसीं (बाॅबी) (राग-कीरवानी)
मैं ज्ञानी, तोss नहींss,2
मगरss हेss प्रभूss,
जब से दर्शन, हुआ तेरा मुझमें
चेतनाss आ गयी
मैं भोगी तोss नहींss
मगरss हेss प्रभूss,
जब से दर्शन,हुआ तेरा मुझमें
विरक्तिss आ गयी
मैं लोभी तोss नहींss
मगरss हेss प्रभूss,
जब से दर्शन,हुआ तेरा मुझमें
त्याज्यताss आ गयी
1
धर्म का नाम ,मैंने सुना था मगर]
धर्म क्या है, ये मुझको नहीं थी खबर ]2
जब से गुरुओं का उपदेश सुनने लगा
मन मेरा भी, कुछ कुछ, बदलने लगा
मैं पापी तो नहींss 2
मगरss हेss प्रभूss,
जब से दर्शन, हुआ तेरा मुझमें
सरलताss आ गयीss-
मैं ज्ञानी, तोss नहींss-----
2
सोचता हूं ,प्रभू तुमसे कुछ मांगता]
चरणों में,झुक के, तेरे ,मैं क्या मांगता]2
जब से दश धर्म पालन मैं करने लगा
क्रोध माया से, मैं,-दूर होने लगा
मैं क्रोधी तो नहीं 2
मगरss हेss प्रभूss,
जब से दर्शन, हुआ तेरा मुझमें
सौम्यताss आ गयी
मैं ज्ञानी, तोs नहींss
मगर हेss प्रभूss,
जब से दर्शन, हुआ तेरा मुझमें
चेतनाss आ गयी
रचयिता राजू बगङा "राजकवि"(sujangarh) मदुरै
21.8.2025 (11.45 pm )
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