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तर्ज ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा
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ये त्यागी,तपस्वी, गुरुवर हमारे, है जैनों की शान 2
करे देव ,गुरुओं, के, चरणों में आ कर, के शत शत प्रणाम
1
सभी जीवों पे, ये दया भाव रखते,2
अहिंसा से चलते, किसी से ना डरते
नहीं राग करते,
नहीं द्वेष करते
हैं ये वीतरागी, रहे समता के साथ
ये त्यागी,तपस्वी, गुरुवर हमारे, है जैनों की शान
करे देव ,गुरुओं, के, चरणों में आ कर, के शत शत प्रणाम
2
बहुत ही कठिन साधना में ये रहते 2
कभी महीनों तक भी निराहार रहते
रहे चाहे गर्मी
रहे चाहे सर्दी
सभी s ऋतुओ में, रखें समता के भाव
ये त्यागी,तपस्वी, गुरुवर हमारे, है जैनों की शान 2
करे देव ,गुरुओं, के, चरणों में आ कर, के शत शत प्रणाम
रचयिता -राजू बगड़ा "राजकवि"(सुजानगढ़) मदुरै
8.9.24 (10.30 pm )
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